ओ बेबी सिंग ए सॉंग
दक्षिण छत्तीसगढ़ के प्रमुख शहर में एक भाईसाब की रैली निकली। ऐसा धूम इस कदर मजमा, इतने कट आउट इतने बैनर पोस्टर कि, शहर में जिधर देखिए भाईसाब ही भाईसाब। रैली का जलवा यूँ समझिए कि, सबसे आगे डीजे पीछे माड़िया डांस करता नर्तक नर्तकियों का समूह, उसके पीछे भाईसाब बड़ी गाड़ी में सबसे उपर। पीछे कार्यकर्ताओं की छोटी भीड़ और फिर गाड़ियों का रेलमपेल क़ाफ़िला। चौराहों के इस शहर में भाईसाब के नंदन वंदन अभिनंदन के लिए हर चौक पर एक स्टेज बनाया गया था। स्टेज फुल वाल्यूम गीतों के स्वर से गुंजायमान रहे और भाईसाब हर जगह उतर कर जाते स्वागत माल्यार्पण और भाईसाब को पद मिलने पर धरती पुत्र का सम्मान मान कार्यकर्ता से अभिनंदन पाते और आगे बढ़ते। लेकिन एक जगह गंभीर लोचा हो गया। ठीक कोतवाली के पास वाले चौक पर बने मंच पर से भाईसाब उतरे ही थे कि मंच पर गीत बजने लगा -“नायक नहीं खलनायक है तू।”अब भाईसाब निकल गए थे आगे, तो उनका ध्यान गया नहीं। सहाफ़ी बस्तर दौरे से लौटते हुए इस राजसी स्वागत और मंच के गीत का अनजाने ही साक्षी हो गया। सहाफ़ी का मानना है कि, किसी न किसी रुप में सत्य अपनी जगह बना ही लेता है, और उसका दृढ़ विश्वास बीजेपी के देवतुल्य कार्यकर्ता पर भी है। सहाफ़ी बस यही नहीं समझा कि, गीत किसी देवतुल्य कार्यकर्ता का पार्टी को और जनता को संदेश था या इस रेलमपेल में सच ने अपनी जगह खुद बनाई। हालाँकि अगले दिन भव्य अविनाशी जलवे के प्रतीक बने भाई साब इस बात पर ग़ुस्सा गोसाईं दिखे कि, शहर भर जो उनके पोस्टर कट आउट से पटा हुआ था, वह जाने कौन निकाल ले गया। बताते हैं कि, भाईसाब का शक उस निगम पर ही है जहां बीजेपी का ही बहुमत है।
बिगेस्ट चीटर विल विन
सरकार नक्सलवाद से लड़ रही है। बिलाशक लड़ रही है। लेकिन इस लड़ाई में एक पॉलिसी ध्यान खींचती है। रणनीतिकारों ने काँटे से काँटा निकालने का पैटर्न अपनाया है। नक्सलियों के कैडर से बने डीआरजी को ही कमांड दी गई है। जंगल की बोली भाषा संकेत से मुकम्मल वाक़िफ़ इन सरेंडर नक्सलियों के ज़रिए सरकार को सीना चौड़ा करने के सटीक अवसर मिल रहे हैं। लेकिन इस सफलता की श्रृंखला के साथ एक सीनियर साहब की बात याद रखी जानी चाहिए जो कि उन्होंने सहाफ़ी से कही है। साहब ने बोला है -“द वन हू इज द बिगेस्ट चीटर विल विन।” बाकी याद रखने, बात को गंभीर मानने ना मानने का काम है सरकार का। क्योंकि सरकार का मतलब सरकार है।संपूर्ण ज्ञान केवल और केवल सरकार को ही होता है।
अपेक्षित हैं
माननीय होना और अमूक माननीय हैं यह बोध कराना दो अलग अलग मसला होता है। जो माननीय होते हैं सो होते हैं, लेकिन जब ये बोध कराने की ज़हमत उठानी पड़े कि अमूक माननीय हैं तो समझिए कि भैंस कभी भी पानी में उतर सकती है। दुर्ग क्षेत्र के एक नेताजी हैं उनके साथ भैंस के पानी में उतरने वाला मसला ही हुआ है। उनका हैप्पी बड्डे था, तो नेताजी के कारिंदों ने चिन्हित बंधुओं को फोन लगाया। फ़ोन से कहा गया -“माननीय भाईसाब का जन्मदिन हैं आप अपेक्षित हैं।” अफ़वाहें हैं कि, कुछ ने इस संवाद का ऑडियो रिकॉर्ड कर लिया है और मौज लेते हुए सुना रहे हैं, दुखद यह सूचना भी है कि, इस फोन के बाद भी नेताजी के हैप्पी बड्डे को गंभीरता से नहीं लिया गया।
इन्हें पैनल में रखवाइए भई!
ईश्वर की बनाई दुनिया है, जो होता है ईश्वर की मर्जी से ही होता है। सत्ताधारी दल के संगठन से जुड़े एक भाईसाब एक जगह पहुँचे। भाईसाब ने साथ आए एमएलए को दिखाते हुए कहा - “इन्हें पैनल वगैरह में बैठाईए भई, बेहद प्रभावी बोलते हैं।” भाईसाब सिफारिश कर रहे थे, यह भी ईश्वर की मर्जी, जिनके लिए कर रहे थे वह भी ईश्वर की मर्जी। अब ये है कि, सिफारिश मानी नहीं गई वर्ना पत्रकारों को बहस मुबाहिसे में विकट मसाला मिलता। लेकिन फिर वही ईश्वर की बनाई दुनिया और ईश्वर की मर्जी।
डाउन टू अर्थ एंड गूड गवर्नेंस
डाउन टू अर्थ याने जमीन से जुड़ा होना। अब कुछ उद्यमशीलता के धनी बंधुओं ने इसे अमली तौर पर अपनाया। जमीन देखे और रेत भी देखे।सरकार अपनी हो तो भाईसाब लोगों को चिंता उंता नई रहती है। चवन्नी का खर्चा और हजार का मुनाफा वाला धंधा है रेत का। जमीन में इससे भी ज्यादा है पर टैम लग लेता है, तो बंधु भाई साब लोग फोकस हो गए रेत में। अब जब उद्यम होगा तो जाहिर श्रम परिश्रम भी होगा, जस तस में उपक्रम भी हो जाता है।अब इसमें कहीं कॉंस्टेबल सर का मर्डर होता है तो कहीं प्रेस रिपोर्टर पर तमंचा लहराते देते हैं, एक इलाक़े में तो कट्टा फायर भी हो गया। अब नकारात्मकता से भरे पूरे लोग इसमें आफ़त मचा रहे हैं। लेकिन अपने राम हैं फुल पॉज़िटिव पर्सन। अपना मानना है यही गूड गवर्नेंस की गूंज है। उत्तर से दक्षिण तक एक समान आलम। कहीं कोई डिफ़रेंस नहीं, एकदम इक्विल।भला वो भी कोई सरकार हुई जो क्षेत्र व्यक्तित्व देख पॉलिसी बदले, नो चांस आखिर सुशासन बाबू की सुशासन सरकार है।
ऑर्डर नहीं निकलेगा
पीएचक्यू में सप्ताहांत पर भी काम करने का नवाचार ऑर्डर जारी हुआ, कुछ अकर्मण्य लोगों ने ऑर्डर कॉपी लीक कर दी और तीन पुड़िया और छोड़ दी। नतीजतन कॉलम में मसला चिपक गया। अब साहब जो हैं अपने,उन्होंने फिर एक नई व्यवस्था लागू करने का नवाचार सोचा। बताया गया कि, भई हफ्ते में एक दिन तो सबको यूनिफ़ॉर्म में आना ही चाहिए। लेकिन इस बार नया ऑर्डर नहीं निकला है। शब्दशः इसी आशय का एक पुराना आदेश सामने लाया गया है।आखिर साहब ऐसे ही साहब थोड़े ही हैं।
बिनाका गीतमाला तो ठीक है पर प्रायोजक कौन है
डीजीपी के लिए यूपीएससी से सलेक्ट लिस्ट आ गई। केवल दो के नाम हैं। अब इसमें जिन दो के नाम नहीं है। उनकी बढ़ाई चढ़ाई को लेकर अलग अलग बैंड फ्रिक्वेंसी पर रेडियो में बिनाका गीतमाला बज रहा है। गीतमाला के बोल भी इतने साफ हैं कि, पीड़िया गांव का बाशिंदा भी समझ जाए कि गीत किस सजना के लिए बजाया जा रहा है। ठीक भी है, जब कुछ नहीं है तो गीतमाला ही बजा लो। लेकिन इस गीतमाला का प्रायोजक कौन है। सहाफ़ी को इस सवाल में उलझा देख एक साहब ने कहा - “भांगड़ा सुनोगे या भोजपुरी में निर्गुण।” अब सहाफ़ी को जटिल जवाब समझ कहाँ आते हैं तो वो भी निकल लिया चौक पर चाय पीने। आप लोग प्रायोजकों के बारे में कुछ समझ पाएँगे तो समझिएगा। बाक़ी गीतमाला को सुने या ना सुनें, हालात बदलने से रहे।
अपने बिरजू भैया
राजधानी के एक स्कूल में शाला प्रवेश उत्सव हुआ। सांसद जी पहुँचे। अब बिरजू भईया कहीं हो और पता न चले कि वे हैं तो फिर काहे के बिरजू भैया। भैया ने मंच से बोला कि,शिक्षक अब केवल तनख़्वाह लेने स्कूल नहीं आएँगे, अब उनको भी परीक्षा देनी होगी कि जो पढ़ा रहे हैं वो कैसा पढ़ा रहे हैं। कुछ बच्चे ही मेरिट फर्स्ट डिविज़न में आए ऐसा नहीं चलेगा। यह सबको पता है कि, युक्तियुक्तकरण से गुरुजी लोग सरकार से जोर बिदके हुए हैं। सबको पता है तो बिरजू भैया को पता ना हो ये कैसे हो सकता है। अब गुरुजी लोगों के ग़ुस्सा गोसाईं मोड में ये वाली बात बोल कर एक्सीलेटर में और ज़ोर डलवाने का मसला हो जाए तो हो जाए। बिरजू भैया अईसे ही बिरजू भईया थोड़ी हैं।